ये सर्वत्र अप्रतिघाती होते हैं, जैसे – अग्नि लोहे में प्रवेश कर जाती है ।
आहारक और वैक्रियिक शरीर भी सीमा के अंदर अप्रतिघाती होते हैं, (आहारक की सीमा – मनुष्यलोक, वैक्रियिक की सीमा – त्रस नाड़ी )
तत्वार्थ सूत्र टीका – श्री शांतिलाल भाई
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment *
Name *
Email *
Website
Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...In order to pass the CAPTCHA please enable JavaScript.