आलू आदि छोड़ने से बेहतर है – खाने योग्य कुछ को रखकर बाकी सबका त्याग करना, क्योंकि –
1. त्याग का अभिमान नहीं आयेगा
2. छोड़ी हुई चीजों के अलावा लाखों चीजों के प्रति गृद्धता नहीं रहेगी तथा खाने का दोष नहीं लगता रहेगा ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
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3 Responses
त्याग- -सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृति को त्याग कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि यदि आलू नहीं छोड़ना चाहता है तो खाने योग्य कुछ को रखकर बाक़ी को छोड़ना या त्याग करना चाहिए। इसलिए त्याग का अभिमान नहीं आयेगा। इसके अलावा छोड़ी हुई चीजों के प्रति लगाव नहीं रहेगा तथा खाने का दोष नहीं लगता रहेगा।
मानो तुम्हारे 100 चीजों का त्याग है तो तुमको उसका घमंड रहेगा तथा लाखों अन्य चीजों के त्याग न करने का दोष भी लगता रहेगा ।
अगर तुमने 200 चीजें रखकर बाक़ी का त्याग कर दिया तो घमंड भी नहीं आयेगा और लाखों चीजों के खाने के दोष से मुक्ति ।
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त्याग- -सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृति को त्याग कहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि यदि आलू नहीं छोड़ना चाहता है तो खाने योग्य कुछ को रखकर बाक़ी को छोड़ना या त्याग करना चाहिए। इसलिए त्याग का अभिमान नहीं आयेगा। इसके अलावा छोड़ी हुई चीजों के प्रति लगाव नहीं रहेगा तथा खाने का दोष नहीं लगता रहेगा।
Can meaning of the post be explained please?
मानो तुम्हारे 100 चीजों का त्याग है तो तुमको उसका घमंड रहेगा तथा लाखों अन्य चीजों के त्याग न करने का दोष भी लगता रहेगा ।
अगर तुमने 200 चीजें रखकर बाक़ी का त्याग कर दिया तो घमंड भी नहीं आयेगा और लाखों चीजों के खाने के दोष से मुक्ति ।