सम्यग्दृष्टि सत्य को जान लेता है पर अविरत अवस्था में, उस पर चल नहीं पाता । चारित्र-मोहनीय मंद/समाप्त होने पर अनुसरण भी करने लगता है । सम्यग्दृष्टि कुलाचार को निभाता है, सम्यक्चारित्री धर्माचार को ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment *
Name *
Email *
Website
Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...In order to pass the CAPTCHA please enable JavaScript.