दान-तीर्थ
दान-तीर्थ बनने (राजा श्रेयांस के द्वारा) के बाद धर्म-तीर्थ की स्थापना हुई ।
जिस दिन दान-तीर्थ समाप्त हो जायेगा (पंचम-काल के अंत में), उसी दिन धर्म-तीर्थ भी समाप्त हो जायेगा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दान-तीर्थ बनने (राजा श्रेयांस के द्वारा) के बाद धर्म-तीर्थ की स्थापना हुई ।
जिस दिन दान-तीर्थ समाप्त हो जायेगा (पंचम-काल के अंत में), उसी दिन धर्म-तीर्थ भी समाप्त हो जायेगा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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तीर्थ का मतलब जिसके आश्रय से भव्य जीव को तीन लोक से तरते हैं। तीर्थ का अर्थ धर्म भी होता है।
दान का मतलब परोपकार से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है, जैसे आहार दान, औषधि, उपकरण, ज्ञान और अभय दान। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि राजा श्रेयांस ने आदिनाथ भगवान को आहार दान दिया गया था,उसी समय भरत चक्रवर्ती जी ने उस समय उसको दान तीर्थ कहा था और धर्म तीर्थ प्रारम्भ हुआ था। जिस दिन दान तीर्थ समाप्त होगा, उस दिन धर्म तीर्थ समाप्त हो जायेगा,यहीं पंचमकाल पूर्ण होगा ।