धरती पर हल चलाने से उसको दु:ख तो होता है,
पर धर्म रूपी फसल उगाने को धरती उर्वरा हो जाती है,
तथा परोपकार के संतोष रूपी सुख में दुःख को भूल जाती है ।
चिंतन
Share this on...
4 Responses
दुःख–पीड़ा रुप आत्मा का परिणाम ही दुःख है।। दुःख चार प्रकार का होता है,भूख,प्यास आदि से उत्पन्न स्वाभाविक दुःख,सर्दी गर्मी आदि से उत्पन्न नैमित्तक दुःख,रोगदि से उत्पन्न शारीरिक दुःख तथा वियोग आदि से उत्पन्न मानसिक दुःख होता है।
अतः धरती पर हल चलाने से उसको दुःख होता है पर धर्म रुपी फसल उगाने को धरती उर्वरा हों जाती है। अतः परोपकार के सन्तोष रुपी सुख में दुःख को भूल जाता है। जीवन में जो परोपकार से सन्तोष मिलता है वह कभी दुःख का अनुभव नहीं कर सकता हैं।
4 Responses
दुःख–पीड़ा रुप आत्मा का परिणाम ही दुःख है।। दुःख चार प्रकार का होता है,भूख,प्यास आदि से उत्पन्न स्वाभाविक दुःख,सर्दी गर्मी आदि से उत्पन्न नैमित्तक दुःख,रोगदि से उत्पन्न शारीरिक दुःख तथा वियोग आदि से उत्पन्न मानसिक दुःख होता है।
अतः धरती पर हल चलाने से उसको दुःख होता है पर धर्म रुपी फसल उगाने को धरती उर्वरा हों जाती है। अतः परोपकार के सन्तोष रुपी सुख में दुःख को भूल जाता है। जीवन में जो परोपकार से सन्तोष मिलता है वह कभी दुःख का अनुभव नहीं कर सकता हैं।
“उर्वरा” ka kya meaning hai, please?
खेतों में अधिक फसल देने की क्षमता ।
Okay.