देव-दर्शन
देव-दर्शन अनंत बार किये होंगे, पर उससे क्या !
आज ऐसे करो जैसे पहली बार कर रहे हो (अद्याष्टक स्त्रोत) ।
ऐसा दर्शन, सम्यग्दर्शन में निमित्त बनता है ।
श्री अष्टपाहुड़/धवला जी में कहा है – अनंत बार भोजन भी तो किया/उगाल खाये जा रहे हो, उसके प्रति तो गृद्धता भी कम नहीं की !
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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देवदर्शन, सम्यग्दर्शन का अत्यंत प्रभावकारी निमित्त है, दर्शन विशुद्ध भाव से करना चाहिए। अतः मुनि श्री प़णय्म सागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य रुप है।