गुरु का प्रवचन देशना-लब्धि नहीं, “देशना” भर है ।
उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना, “लब्धि” बनती है ।
गुरु की वाणी से सम्यग्दर्शन नहीं, देशना-लब्धि से भी नहीं,
बल्कि जिनवाणी से सम्यग्दर्शन होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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8 Responses
देशना लब्धि का तात्पर्य समाचीन धर्म का उपदेश देना होता है,देशना देने वाले आचार्य आदि की प्राप्ति होना तथा उपदिष्ट अर्थ के ग़हण धारण और विचारण का सामर्थ प्राप्त होना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गुरु का प़वचन देशना लब्धि नहीं बल्कि देशना भर है।उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना लब्धि बनती है । गुरु की वाणी से सम्यग्दर्शन नहीं व देशना लब्धि से भी नहीं बल्कि जिनवाणी से सम्यग्दर्शन होता है।
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देशना लब्धि का तात्पर्य समाचीन धर्म का उपदेश देना होता है,देशना देने वाले आचार्य आदि की प्राप्ति होना तथा उपदिष्ट अर्थ के ग़हण धारण और विचारण का सामर्थ प्राप्त होना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गुरु का प़वचन देशना लब्धि नहीं बल्कि देशना भर है।उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना लब्धि बनती है । गुरु की वाणी से सम्यग्दर्शन नहीं व देशना लब्धि से भी नहीं बल्कि जिनवाणी से सम्यग्दर्शन होता है।
Magar kya Guru ki vani, “Jinvani” par adhaarit nahi hoti?
सच्चे गुरु की होती है ।
“Deshnalabdhi” bola to sacche guru ki hi baat ho rahi hai, na?
सही
To phir to “guruvaani” se bhi samyagdarshan hona chahiye?
जिनवाणी के सही अर्थ को समझाने के लिए गुरु की शरण चाहिए ।
Okay.