धन और धर्म की एक ही राशि होती है ।
धन फल है, धर्म जड़ है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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2 Responses
धर्म का मतलब सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ही है,या जीवों की संसार के दुःखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुचावे यह भी धर्म है। यह दो प्रकार का होता हैं एक व्यवहारिक और निश्चय धर्म । व्यवहार धर्म में दान पूजा शील जप तप त्याग आदि होता है लेकिन परिणामों की निर्मलता,समता या वीतरागता निश्चय धर्म है। अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म और धन की राशी एक होती है लेकिन धन फल है लेकिन धर्म जड़ है। अतः जीवन में धर्म पर श्रद्वा रखना अनिवार्य है। इससे जुड़कर ही पुण्य अर्जित कर सकते हो और पाप को काट सकते हो।
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धर्म का मतलब सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ही है,या जीवों की संसार के दुःखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुचावे यह भी धर्म है। यह दो प्रकार का होता हैं एक व्यवहारिक और निश्चय धर्म । व्यवहार धर्म में दान पूजा शील जप तप त्याग आदि होता है लेकिन परिणामों की निर्मलता,समता या वीतरागता निश्चय धर्म है। अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म और धन की राशी एक होती है लेकिन धन फल है लेकिन धर्म जड़ है। अतः जीवन में धर्म पर श्रद्वा रखना अनिवार्य है। इससे जुड़कर ही पुण्य अर्जित कर सकते हो और पाप को काट सकते हो।
सुन्दर व्याख्या—
व्यवहार धर्म– पूजादि
निश्चय धर्म– समतादि परिणाम ।