अभाव में धर्म करना बड़ी बात नहीं,
अभाव का एहसास न होना, धर्म की बात है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है, अथवा जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुंचाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अभाव में धर्म करना बड़ी बात नहीं बल्कि अभाव का एहसास नहीं होना ही धर्म है।
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है, अथवा जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुंचाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अभाव में धर्म करना बड़ी बात नहीं बल्कि अभाव का एहसास नहीं होना ही धर्म है।