धर्म-ध्यान
इसके 4 भेद और भी होते हैं (आज्ञा-विचयादि के अलावा) , पिंडस्थादि (पार्थिवी, आग्नेय, मारुती, वारुणी >>>तत्वरुपवती)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
इसके 4 भेद और भी होते हैं (आज्ञा-विचयादि के अलावा) , पिंडस्थादि (पार्थिवी, आग्नेय, मारुती, वारुणी >>>तत्वरुपवती)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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ध्यान का तात्पर्य एकाग्रता का नाम रहता है। ध्यान चार प्रकार के होते हैं,आर्तध्यान,रौद़ध्यान,धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान। इनमें धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग प्राप्ति का साधन होता है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन के कल्याण के लिए धर्म ध्यान परम आवश्यक है।