धर्मात्मा वही हो सकता है जो अपने पाप-कर्मों को काटने का प़यास करता है।पाप काटने से पुण्य की ओर बढता है और पुण्य से ऊबने लगता है, वही धर्मात्मा की श्रेणी में आता है।अतः धर्म से जुडकर अपने पापों का निवारण करना चाहिए ।
वैराग्य के लिए वीतरागता अपनाना आवश्यक है जिसमें आत्मसाधना के द्धारा राग द्वेष नष्ट हो जाते हैं।शमशान में जाने से वैराग्य के भाव तो उत्पन्न होते हैं लेकिन जब तक धर्म रुपी बीज को नहीं डालेंगे तब तक वैराग्य के भाव नहीं रह सकते हैं।अतः धर्म से जुडने का प़यास करना चाहिए तभी वैराग्य के भाव आ सकते हैं। andy kaufman tony
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धर्मात्मा वही हो सकता है जो अपने पाप-कर्मों को काटने का प़यास करता है।पाप काटने से पुण्य की ओर बढता है और पुण्य से ऊबने लगता है, वही धर्मात्मा की श्रेणी में आता है।अतः धर्म से जुडकर अपने पापों का निवारण करना चाहिए ।
वैराग्य के लिए वीतरागता अपनाना आवश्यक है जिसमें आत्मसाधना के द्धारा राग द्वेष नष्ट हो जाते हैं।शमशान में जाने से वैराग्य के भाव तो उत्पन्न होते हैं लेकिन जब तक धर्म रुपी बीज को नहीं डालेंगे तब तक वैराग्य के भाव नहीं रह सकते हैं।अतः धर्म से जुडने का प़यास करना चाहिए तभी वैराग्य के भाव आ सकते हैं। andy kaufman tony