धर्मात्माओं की रक्षा
साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते, चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्त्तियाँ हों क्योंकि उसमें दुश्मन की हिंसा होगी ।
उनकी रक्षा का दायित्व श्रावकों पर होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते, चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्त्तियाँ हों क्योंकि उसमें दुश्मन की हिंसा होगी ।
उनकी रक्षा का दायित्व श्रावकों पर होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते हैं,चाहे कितनी भी मंत्र शक्तियां हों, क्योंकि उनके दुश्मन की हिंसा होगी।
अतः श्रावकों पर रक्षा का दायित्व होता है । श्रावकों पर रक्षा,वैय्यावृत्ति और आहार कराने का दायित्व होता है, इससे श्रावकों के पुण्य में वृद्धि होती है।