ध्यान किया या कराया नहीं जाता,
बल्कि जिया जाता है ।
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ध्यान–चित्त की एकाग्रता का नाम ध्यान है।यह भी चार प्रकार का होता है, आर्तध्यान,रौद़ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। आर्तध्यान और रौद़ध्यान संसार को बढ़ाने वाले होते हैं जो अशुभ है, जबकि धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ति में सहायक होने से शुभ ध्यान है। अतः उक्त कथन सत्य है कि ध्यान किया या कराया नहीं जाता है बल्कि जिया जाता है। अतः ध्यान मोक्ष मार्ग पर चलने का संकल्प है और शुभ ध्यान करने पर अग्रसर हो सकता है।
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ध्यान–चित्त की एकाग्रता का नाम ध्यान है।यह भी चार प्रकार का होता है, आर्तध्यान,रौद़ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। आर्तध्यान और रौद़ध्यान संसार को बढ़ाने वाले होते हैं जो अशुभ है, जबकि धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ति में सहायक होने से शुभ ध्यान है। अतः उक्त कथन सत्य है कि ध्यान किया या कराया नहीं जाता है बल्कि जिया जाता है। अतः ध्यान मोक्ष मार्ग पर चलने का संकल्प है और शुभ ध्यान करने पर अग्रसर हो सकता है।
Kya iska matlab, “Acharan” se hai?
सही,
ध्यान अंतरंग तप है ।
Okay.