ध्यान / चिंतन
ध्यान तदरूप जैसे पिंडस्थ ध्यान में मेरी आत्मा सिद्ध रूप। वर्तमान पर्याय का ध्यान नहीं होता। मुनि भी साधु परमेष्ठी के ध्यान में, अपने से ऊँचे मुनियों का ध्यान करते हैं। ध्यान का काल अंतर्मुहूर्त होता है।
चिंतन की कोई सीमा नहीं। गृहस्थों का चिंतन ही होता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने ध्यान एवं चिंतन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः श्रावकों को भी चिंतन की जगह ध्यान करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।