नारकियों के अवधिज्ञान की पहुँच बहुत कम होती है, अपनी दुश्मनी निभाने लायक ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अवधिज्ञान का तात्पर्य जो द़व्य, क्षेत्र,काल आदि की सीमा में रहकर सभी पदार्थों को प़त्यक्ष जानना होता है, इसमें छह भेद होते हैं, जिसमें अवस्थित और अनवस्थित भी होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि नारकियों के अवधिज्ञान की पहुंच बहुत कम होती है,उनको अपनी दुश्मनी निभाने लायक ही रहती है।
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अवधिज्ञान का तात्पर्य जो द़व्य, क्षेत्र,काल आदि की सीमा में रहकर सभी पदार्थों को प़त्यक्ष जानना होता है, इसमें छह भेद होते हैं, जिसमें अवस्थित और अनवस्थित भी होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि नारकियों के अवधिज्ञान की पहुंच बहुत कम होती है,उनको अपनी दुश्मनी निभाने लायक ही रहती है।