निंदा का तात्पर्य स्वयं अपने दोषों का प़कट करना एवं पश्चाताप करना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अलोचन से लोचन खुलते हैं,जिसका स्वागत करना आवश्यक है। जीवन में दुसरों की आलोचना नहीं करना चाहिए बल्कि दुसरा आपकी करता है, उससे अपने को सुधारने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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निंदा का तात्पर्य स्वयं अपने दोषों का प़कट करना एवं पश्चाताप करना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अलोचन से लोचन खुलते हैं,जिसका स्वागत करना आवश्यक है। जीवन में दुसरों की आलोचना नहीं करना चाहिए बल्कि दुसरा आपकी करता है, उससे अपने को सुधारने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।