मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद; धार्मिक-क्रियाओं में अवरोधक हैं ।
लेकिन कषाय और योग के साथ क्रियायें निरंतर की जा सकती हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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कषाय का मतलब आत्मा में होने वाले क़ोधादि रुप कलुषता ।क़ोध,मान, माया और लोभ चार कषायें होती हैं।
योग का मतलब मन वचन काय के द्वारा होने वाले आत्म प़देशों के परिस्पन्दन अथवा मन वचन काय की प़वृति के लिए जीव का प्रयत्न विशेष योग कहलाता है,ये तीनों शुभ और अशुभ होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि मिथ्यात्व,अवरति,प़माद यह धार्मिक क्रियाओं में अवरोधक होते हैं। लेकिन कषाय और योग के साथ क़ियायें निरन्तर की जा सकती हैं।।
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कषाय का मतलब आत्मा में होने वाले क़ोधादि रुप कलुषता ।क़ोध,मान, माया और लोभ चार कषायें होती हैं।
योग का मतलब मन वचन काय के द्वारा होने वाले आत्म प़देशों के परिस्पन्दन अथवा मन वचन काय की प़वृति के लिए जीव का प्रयत्न विशेष योग कहलाता है,ये तीनों शुभ और अशुभ होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि मिथ्यात्व,अवरति,प़माद यह धार्मिक क्रियाओं में अवरोधक होते हैं। लेकिन कषाय और योग के साथ क़ियायें निरन्तर की जा सकती हैं।।