निर्जरा में मुख्य भूमिका आशय की।
1. निर्जरा चाहने वाला अंतरमुखी होगा
2. सम्यग्दर्शन के भाव से भी
3. इच्छा निरोध: तप:
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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निर्जरा का तात्पर्य कर्मों का झड़ना होता है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि निर्जरा चाहने वाला अंतर्मुखी होगा, सम्यग्दर्शन के भावों से भी, इच्छा निरोध तप। अतः जीवन में कल्याण के लिए कर्मों का झाड़ना परम आवश्यक है।
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निर्जरा का तात्पर्य कर्मों का झड़ना होता है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि निर्जरा चाहने वाला अंतर्मुखी होगा, सम्यग्दर्शन के भावों से भी, इच्छा निरोध तप। अतः जीवन में कल्याण के लिए कर्मों का झाड़ना परम आवश्यक है।