निर्विकल्प समाधि में ज्ञान – तात्कालिक, क्षयोपशमिक, एकांकी (जब आत्मा का ज्ञान, तब बाहर का नहीं) ।
केवलज्ञान – शाश्वत, क्षायिक, अनेकांकी होता है ।
श्री समयसार जी – पेज – 152
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समाधि- – वीतराग भाव से आत्मा का ध्यान करना होता है अथवा समस्त विकल्पों को नष्ट करना परम समाधि है। केवल ज्ञान- – जो चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवल ज्ञान है। यह चार घातियों कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि निर्विकल्प समाधि में ज्ञान तात्कालिक,क्षयोपशमिक, एकांकी यानी आत्मा का ज्ञान, बाहर का नहीं है। केवलज्ञान- – शास्वत,क्षायिक,अनेकांकी होता है।
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समाधि- – वीतराग भाव से आत्मा का ध्यान करना होता है अथवा समस्त विकल्पों को नष्ट करना परम समाधि है। केवल ज्ञान- – जो चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवल ज्ञान है। यह चार घातियों कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि निर्विकल्प समाधि में ज्ञान तात्कालिक,क्षयोपशमिक, एकांकी यानी आत्मा का ज्ञान, बाहर का नहीं है। केवलज्ञान- – शास्वत,क्षायिक,अनेकांकी होता है।