पंचाश्चर्य भक्तों के पुण्य से होता है क्योंकि वही मुनि जब दूसरे भक्त के यहाँ आहार लेते हैं तब पंचाश्चर्य नहीं होते ।
बरसे हुये रत्नों का प्रयोग भक्त ही करता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि पंचाश्र्चर्य भक्तों के पुण्य से ही प्राप्त होता है ,वही मुनि जब दुसरे भक्त के यहां आहार लेते हैं,तब पंचाश्र्चर्य नहीं होते हैं, यदि रत्नों की बर्षा होती है,उसका प़योग भक्त ही कर सकता हैं। अतः जीवन में जो आहार देते हैं,उन्ही को पुण्य मिलता है।
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि पंचाश्र्चर्य भक्तों के पुण्य से ही प्राप्त होता है ,वही मुनि जब दुसरे भक्त के यहां आहार लेते हैं,तब पंचाश्र्चर्य नहीं होते हैं, यदि रत्नों की बर्षा होती है,उसका प़योग भक्त ही कर सकता हैं। अतः जीवन में जो आहार देते हैं,उन्ही को पुण्य मिलता है।