1. मनोज्ञ या अमनोज्ञ दोनों में राग या द्वेष रखना परिग्रह है।
2. द्रव्य-परिग्रह – अलग-अलग इन्द्रियों के अलग-अलग द्रव्य।
3. क्षेत्र-परिग्रह – स्थान विशेष से ज्यादा लगाव।
4. काल-परिग्रह – काल/मौसम विशेष से ज्यादा लगाव।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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परिग़ह का तात्पर्य यह मेरा है या इसका स्वामी हूं,इस प्रकार का ममत्व भाव है,परिग़ह दो प़कार का होता है,एक अंतरंग एवं दूसरा ब़ाह्य परिग़ह होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि मनोज्ञ या अमनोज्ञ में राग द्वेष रखना परिग़ह होता है, इसके अलावा द़व्य, क्षेत्र,काल का विवरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में ब़ाह्य परिग़ह के साथ अंतरंग परिग़ह का भी त्याग करना परम आवश्यक है ताकि मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकते हैं।
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परिग़ह का तात्पर्य यह मेरा है या इसका स्वामी हूं,इस प्रकार का ममत्व भाव है,परिग़ह दो प़कार का होता है,एक अंतरंग एवं दूसरा ब़ाह्य परिग़ह होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि मनोज्ञ या अमनोज्ञ में राग द्वेष रखना परिग़ह होता है, इसके अलावा द़व्य, क्षेत्र,काल का विवरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में ब़ाह्य परिग़ह के साथ अंतरंग परिग़ह का भी त्याग करना परम आवश्यक है ताकि मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकते हैं।