पात्र/क्षेत्र/काल की शुद्धता से मन/भावों में शुद्धि आती है जिससे आहारादि में विशेषता आ जाती है।
आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने अकाल में स्वाध्याय किया, उनकी गर्दन टेड़ी हो गयी।
दान देने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं – देने के बाद के भाव।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन में भावों में शुद्धता होना चाहिए, इसके लिए कषाय में मंदता होनी चाहिए। उपरोक्त कथन सत्य है कि पात्र,काल, क्षेत्र की शुद्धता से भावों में शुद्धता आती है। जीवन में दान भी शुद्ध भाव से देना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन में भावों में शुद्धता होना चाहिए, इसके लिए कषाय में मंदता होनी चाहिए। उपरोक्त कथन सत्य है कि पात्र,काल, क्षेत्र की शुद्धता से भावों में शुद्धता आती है। जीवन में दान भी शुद्ध भाव से देना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।