पिता की सम्पत्ति
बच्चों को पिता की सम्पत्ति पर दृष्टि नहीं रखनी चाहिये। वे दें, तो सहेजा जैसी मात्रा में लें, जिससे आप अपना ख़ुद का दही जमा सकें।
पिता की पुण्य की कमाई के सहेजे से दही रूप सम्पत्ति भी पुण्य रूप हो जायेगी।
पिता की सम्पत्ति को भोगों में न लगायें। पिता पूज्य हैं, अतः सम्पत्ति को पुण्य कार्यों में लगायें।
चक्रवर्तियों के बेटे भी उनकी अपार सम्पत्ति को नहीं भोगते; सहेजे के बराबर लेते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
4 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि बच्चों को पिता की सम्पत्ति पर नज़र नहीं रखना चाहिए। दही रुप सम्पत्ति लेना चाहिए ताकि यह आपकी पुण्य की कमाई कर सकता है। पिता की सम्पत्ति को भोगों में नहीं लगाना चाहिए। पिता को बच्चों को अति आवश्यकता अनुसार देना चाहिए, एवं शेष सम्पत्ति पुण्य के कार्यों में लगाना चाहिए। बच्चों को पिता की सम्पत्ति पर पुण्य अर्जित नहीं किया जा सकता है। बच्चों को अपनी कमाई को पुण्य में निवेश करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
“सहेजा” ka kya meaning hai, please ?
सहेजा मात्रा में बहुत कम प्रयोग किया जाता है पर उससे बहुत सा स्वादिष्ट/ स्वास्थ्यवर्धक दही जमाया जा सकता है।
Okay.