मिथ्यात्व के साथ पूर्व में पुण्य कमाया हुआ, पाप कराने का भाव कराता है ।
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पुण्य के उदय में लोग भोगों की प़वृति के कारण पाप कमाने लगते हैं।पूर्व के उदय में पुण्य की प़ाप्ति में पाप की जगह पुण्य के कार्य करना चाहिए जिससे अगले भव में पुण्य की बढोतरी होती रहे तो मोक्ष मार्ग प़शत्त होता रहेगा। पुण्य के उदय में पाप के भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि पुण्य क्षीण होता है।
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पुण्य के उदय में लोग भोगों की प़वृति के कारण पाप कमाने लगते हैं।पूर्व के उदय में पुण्य की प़ाप्ति में पाप की जगह पुण्य के कार्य करना चाहिए जिससे अगले भव में पुण्य की बढोतरी होती रहे तो मोक्ष मार्ग प़शत्त होता रहेगा। पुण्य के उदय में पाप के भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि पुण्य क्षीण होता है।