पाप प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियाँ पुण्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियों से ज्यादा होती हैं जैसे असाता की साता से ज्यादा।
पुण्य प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभाग ज्यादा होते हैं पाप प्रकृतियों से।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में पुण्य प़कृति को उत्कृष्ट रखना चाहिए ताकि पाप प़कृति कम से कम हो! अतः जीवन में पापों का त्याग करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में पुण्य प़कृति को उत्कृष्ट रखना चाहिए ताकि पाप प़कृति कम से कम हो! अतः जीवन में पापों का त्याग करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘पुण्य प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभाग ज्यादा होते हैं पाप प्रकृतियों से।’ Iska kya example hai ?
तीर्थंकर आदि के साता असाता दोनों का उदय होने पर भी वे साता में ही रहते हैं।
Okay.