पुरुषार्थ

समवसरण में सीढियां चढ़नी नहीं पड़तीं; सब कुछ देवकृत/ स्वचालित।
लेकिन पहली सीढ़ी तक जाने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा,
बाह्य परकोटे के नृत्यादि के आकर्षणों को दबाना होगा।
तब देवदर्शन होते हैं।

चिंतन

Share this on...

2 Responses

  1. चिंतन में पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थिक कार्यों में पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

August 3, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930