चक्रवर्ती अपने पास चक्र आने के बाद भी दुनिया को पुरुषार्थ का महत्त्व दिखाने के लिए साठ हजार वर्षों तक विजय-यात्रा करते रहे ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता है। उपरोक्त पुरुषार्थ धर्म अर्थ और काम और मोक्ष के लिए आवश्यक है। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अतः उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज ने दिया है वह पूर्ण सत्य है। अतः बिना पुरुषार्थ के कहीं भी उपलब्धि प्राप्त नहीं हो सकती है।
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पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता है। उपरोक्त पुरुषार्थ धर्म अर्थ और काम और मोक्ष के लिए आवश्यक है। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अतः उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज ने दिया है वह पूर्ण सत्य है। अतः बिना पुरुषार्थ के कहीं भी उपलब्धि प्राप्त नहीं हो सकती है।