पहले अपने आत्मविश्वास/ पुरुषार्थ से समस्याओं को निपटाओ,
न निपटे तब भगवान/ गुरु की शरण में जाना;
लेकिन वहां भी अपनी भक्ति के विश्वास पर ।
2) यदि समस्या ख़ुद निपटालो,
तब तो भगवान/ गुरु की शरण में आभार प्रकट करने ज़रूर जाना ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता हैं। धर्म,अर्थ काम और मोक्ष यह चार प्रकार के पुरुषार्थ है। धर्म द्वारा ही मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं। धर्म से रहित अर्थ और काम पुरुषार्थ सिर्फ संसार बढ़ाने वाला होता है। आशीर्वाद का मतलब जो माता पिता और गुरुओं को मिलता है,वह जीवन का कल्याण कर सकता हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पहले अपने आत्मविश्वास या पुरुषार्थ से समस्या को निपटाओ यदि न निपटे तब भगवान और गुरुओं पर जाना आवश्यक है लेकिन उधर अपनी भक्ति पर विश्वास होना आवश्यक है। लेकिन भगवान् और गुरुओं की शरण में आभार प़कट करने जाना आवश्यक है। उक्त कथन मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने कहा है। मुनि को बार बार नमोस्तु।
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पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता हैं। धर्म,अर्थ काम और मोक्ष यह चार प्रकार के पुरुषार्थ है। धर्म द्वारा ही मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं। धर्म से रहित अर्थ और काम पुरुषार्थ सिर्फ संसार बढ़ाने वाला होता है। आशीर्वाद का मतलब जो माता पिता और गुरुओं को मिलता है,वह जीवन का कल्याण कर सकता हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पहले अपने आत्मविश्वास या पुरुषार्थ से समस्या को निपटाओ यदि न निपटे तब भगवान और गुरुओं पर जाना आवश्यक है लेकिन उधर अपनी भक्ति पर विश्वास होना आवश्यक है। लेकिन भगवान् और गुरुओं की शरण में आभार प़कट करने जाना आवश्यक है। उक्त कथन मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने कहा है। मुनि को बार बार नमोस्तु।