पूजा में भगवान के गुणगान है + अपना दुखड़ा,
जाप में भगवान के गुणों का वंदन + अपना Interest,
ध्यान में सिर्फ भगवान के गुणों का चिंतन ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जैन धर्म में पूजा,जाप और ध्यान का महत्व पूर्ण स्थान है। पूजा में पंचपरमेष्टी के गुणों का चिन्तन करना होता है, इसमें पूजा जल, चन्दन आदि आठ द़व्य से की जाती है एवं साथ में अभिषेक भी करना आवश्यक है जाप में भगवान के गुणों का वंदन यानी अपने जीवन के कल्याण के लिए होता है। ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता या भगवान के गुणों का चिन्तन होता है। अतः जीवन में उक्त तीनों का पालन करने से कर्मों की निर्जरा होती है।
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जैन धर्म में पूजा,जाप और ध्यान का महत्व पूर्ण स्थान है। पूजा में पंचपरमेष्टी के गुणों का चिन्तन करना होता है, इसमें पूजा जल, चन्दन आदि आठ द़व्य से की जाती है एवं साथ में अभिषेक भी करना आवश्यक है जाप में भगवान के गुणों का वंदन यानी अपने जीवन के कल्याण के लिए होता है। ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता या भगवान के गुणों का चिन्तन होता है। अतः जीवन में उक्त तीनों का पालन करने से कर्मों की निर्जरा होती है।