पूजादि क्रियायें पापों का प्रक्षालन है ।
गृहस्थी में ऐसी पाप क्रियायें होती ही रहती, इसलिये गृहस्थों को पूजादि आवश्यक कहा है, साधुओं को नहीं ।
नहाता कौन है ? जो गंदा होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
पूजा का मतलब पंचपरमेष्टी के गुणों का चिन्तवन करना होता है।यह क़ियाये पापों से प़क्षालन है।
ग़हस्थी में ऐसी पाप क़ियायें होती रहती हैं, इसलिए ग़हस्थो को पूजादि करना आवश्यक कहा गया है।यह साधुओं के लिए नहीं होती है।यह सही है कि नहाता वही जो गंदा होता है। इसमें साधुओं को नहाने का प़ाबधान नहीं है।
One Response
पूजा का मतलब पंचपरमेष्टी के गुणों का चिन्तवन करना होता है।यह क़ियाये पापों से प़क्षालन है।
ग़हस्थी में ऐसी पाप क़ियायें होती रहती हैं, इसलिए ग़हस्थो को पूजादि करना आवश्यक कहा गया है।यह साधुओं के लिए नहीं होती है।यह सही है कि नहाता वही जो गंदा होता है। इसमें साधुओं को नहाने का प़ाबधान नहीं है।