पूजा / भक्ति
पूजा गुणानुवाद है, भक्ति गुणानुराग – भगवान/गुरु व उनके गुणों से।
भक्ति श्रद्धा का बाह्य रूप है पर इससे आंतरिक प्रेम उत्पन्न करता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पूजा गुणानुवाद है, भक्ति गुणानुराग – भगवान/गुरु व उनके गुणों से।
भक्ति श्रद्धा का बाह्य रूप है पर इससे आंतरिक प्रेम उत्पन्न करता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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पूजा का तात्पर्य पंचपरमेष्ठी के गुणों का चिंन्तमन करना होता है, पूजा जल, चन्दन आदि अष्ट द़व्य से की जाती है, प़सन्नता प़ूर्वक की गई पूजा फल देने वाली होती है। भक्ति का मतलब अर्हन्त भगवान् आदि के गुणों में अनुराग रखना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजा गुणानुवाद है, जबकि भक्ति गुणानुराग है। अतः भक्ति श्रद्धा का ब़ाम्ह रुप है पर इससे अंतरंग प़ेम पैदा होता है।