पूजा में स्वाध्याय है, क्योंकि भगवान का गुणानुवाद है;
पर स्वाध्याय में पूजा नहीं, क्योंकि उसमें नरकों का ही वर्णन चल रहा हो ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
पूजा-पंच परमेष्ठी के गुणो का चिन्तवन करना होता है यदि पूजा प़सन्नता पूर्वक करने पर प़चुर फल मिलता है।। स्वाध्याय-आत्महित की भावना से सत्-शास्त्र का वाचन करना, मनन करना और उपदेश देना होता है।ज्ञान की आराधना में तत्पर रहना स्वाध्याय कहलाता है।अतः पूजा और स्वाध्याय दोनो कर्म की निर्जरा में सहायक होते हैं।अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजा में स्वाध्याय है, क्योकि भगवान् का गुणानुवाद है लेकिन स्वाध्याय में पूजा निहत नहीं है क्योकि उसमे नरको का भी वर्णन होता है लेकिन पूजा और स्वाध्याय दोनो कर्म की निर्जरा में सहायक होते हैं और पुण्य की प़ाप्ति होती है।
One Response
पूजा-पंच परमेष्ठी के गुणो का चिन्तवन करना होता है यदि पूजा प़सन्नता पूर्वक करने पर प़चुर फल मिलता है।। स्वाध्याय-आत्महित की भावना से सत्-शास्त्र का वाचन करना, मनन करना और उपदेश देना होता है।ज्ञान की आराधना में तत्पर रहना स्वाध्याय कहलाता है।अतः पूजा और स्वाध्याय दोनो कर्म की निर्जरा में सहायक होते हैं।अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजा में स्वाध्याय है, क्योकि भगवान् का गुणानुवाद है लेकिन स्वाध्याय में पूजा निहत नहीं है क्योकि उसमे नरको का भी वर्णन होता है लेकिन पूजा और स्वाध्याय दोनो कर्म की निर्जरा में सहायक होते हैं और पुण्य की प़ाप्ति होती है।