प्रतिक्रमण

घर में रह रहे व्रती को प्रतिक्रमण करने को नहीं कहा क्योंकि वे प्रायश्चित/प्रत्याख्यान नहीं कर सकते ।
फिर भी कोई प्रतिक्रमण करता है तो दोष नहीं, पर आलोचना जरूर करना चाहिये ।
मुनियों के लिये प्रतिक्रमण है पर कैसे करने की विधि नहीं लिखी ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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4 Responses

  1. प़तिकमण- -किए गये दोषों की निवृति का नाम प़तिकमण है।जब चारित्र का पालन करते हुए साधुओं से कोई दोष हो जाता हैं तो मन वचन से मैंने वह अयोग्य कार्य किया ऐसा पश्चाताप रुप परिणाम उत्पन्न होता है,यही प़तिकमण कहलाता है।यह साधु का मूल गुण होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि यह सिर्फ मुनियों के लिए प़तिकमण है पर कैसे करने की विधि नहीं लिखी है। लेकिन घर में रह रहे व़ती को प़तिकमण करने को नहीं कहा गया है क्योंकि वह प्रायश्चित और प़त्याख्यान नहीं कर सकते हैं। यदि करते हैं तो कोई दोष नहीं है पर आलोचना अवश्य करना चाहिए।

    1. घर में प्रायश्चित किससे लेंगे !
      घर में रहकर फिर वे ही दोष नहीं लगेंगे, ऐसा प्रत्याख्यान कैसे ले सकते हैं !!

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