प्रत्येक / साधारण
प्रत्येक व साधारण, वनस्पतिकायिक के 2 भेद हैं।
प्रत्येक के 2 भेद ….सप्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित….
साधारण/ निगोदिया सहित सप्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित निगोद रहित।
सप्रतिष्ठित कौन से ?
1. ऊपर की लकीरें गूढ़ हों प्रकट न हों जैसी कच्ची में।
2. संधियां गूढ़ हों जैसी कच्चे अनार में।
3. पर्व/ पोर गूढ़ हों जैसी कच्चे गन्ने में।
4. समभंग ….तोड़ने पर टेड़े-मेड़े टुकड़े न हों।
5. रेशे गूढ़ हों।
6. छिन्न-भिन्न करने पर उग आयें।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड – गाथा- 187)
One Response
मुनि महाराज जी ने प़त्येक एवं साधारण वनस्पतियकायिक के भेद बताकर उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!