स्वदर्श
दर्पण को ना*,
दर्पण में देखो ना**,
निर्दोष होने।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* बाह्य/ Frame/ दर्पण की Quality.
** दर्पण में अपने दोषों को देखो।
दर्पण को ना*,
दर्पण में देखो ना**,
निर्दोष होने।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* बाह्य/ Frame/ दर्पण की Quality.
** दर्पण में अपने दोषों को देखो।
One Response
आचार्य श्री विधा सागर महाराज का हाइकु का सुन्दर वर्णन किया गया है! दर्पण में अपनी शक्ल देखते हैं, न कि अपने दोषों को! अतः जीवन में अपने दोषो को निवारण के लिए धर्म का आश्रय लेना परम आवश्यक है, ताकि जीवन का कल्याण होगा!