वीतराग/अहिंसा धर्म में पहले उपदेश साधु बनने का/ छोड़ने का होता है, क्योंकि इसमें निवृत्ति की प्रमुखता है ।
अन्य मत प्रवृत्तिआत्मक होते हैं ।
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निवृत्ति- -पर्याप्ति नाम कर्म के उदय से युक्त जीव के जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती उतने समय को निवृत्ति कहते हैं। अतः जब प़वृति वीतराग और अहिंसा धर्म में पहिले उपदेश साधु बनने का होता है लेकिन उसके पहिले अपनी पूर्व प़वृति को छोड़ने का होना जरूरी है, क्योंकि इसमें निवृत्ति की प़मुखता होती है।जब कि अन्य मत प़वृति आत्मिक होते हैं।
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निवृत्ति- -पर्याप्ति नाम कर्म के उदय से युक्त जीव के जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती उतने समय को निवृत्ति कहते हैं। अतः जब प़वृति वीतराग और अहिंसा धर्म में पहिले उपदेश साधु बनने का होता है लेकिन उसके पहिले अपनी पूर्व प़वृति को छोड़ने का होना जरूरी है, क्योंकि इसमें निवृत्ति की प़मुखता होती है।जब कि अन्य मत प़वृति आत्मिक होते हैं।