प्रायश्चित

दोषों में छेद कर देना ।
बीमारी में कड़वी दवा दंड़ नहीं होती,
ऐसे ही प्रायश्चित , बीमारी अच्छी करने की विधि है ।

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  1. प़ायश्र्चित साधुऔं का मूल गुण है। प़मादजन्य दोषों का परिहार करना प़ायश्र्चित नाम का तप है। व़तों में दोष लगने पर साधु अपने दोषों का निराकरण करने के लिए उपवास आदि अनुष्ठान करते हैं यही प़ायश्र्चित कहलाता है। श्रावकों को अपने दोषों के निवारण करने के लिए प़तिकमण करना आवश्यक है।

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