फूलमाला

एक व्यक्ति ने भावावेश में आकर आ. श्री विद्यासागर जी के गले में फूलों की माला पहना दी ।
आ. श्री ने आँखें बंद कर ली, उपसर्ग मानकर । दूसरे श्रावकों ने माला उतार दी ।
आ. श्री ने आँखें खोल लीं ।
सबने उस भक्त को डांटा, वह प्रायश्चित में रोने लगा, आ. श्री ने उसे सांत्वना दी डांटा नहीं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

Share this on...

One Response

  1. फूलमाला बनाना हिंसा का रुप है।लौकिक क्षेत्र में सम्मान देने के लिए उपयोग करते हैं।परमार्थ क्षेत्र में उसका उपयोग करना वर्जित है।फूल को तोड़ना हिंसा का प़तीक है।फूल सबके जीवन में सुगन्ध फेलाता है।फूलमाला का उपयोग आचार्य श्री विधासागर महाराज के गले में ड़ालना उचित नहीं था, इसलिए इस उपसर्ग के लिए आखें बन्द करना पड़ा था, इसके लिए प़तिकमण करना आवश्यक था।जिस व्यक्ति ने डाला था, उसको भी क्षमा कर दिया था।जैन धर्म में दया का भाव होना आवश्यक हैं।अतः हिंसा से बचना चाहिए एवं दया का भाव होना चाहिए ताकि कल्याण हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

March 25, 2019

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930