बंधन
सांसारिक बंधन पुराने जूते जैसा होता है – पता ही नहीं लगता कि पैर जूते में फंसा है ।
पता तब लगता है जब जूता काटता है ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
सांसारिक बंधन पुराने जूते जैसा होता है – पता ही नहीं लगता कि पैर जूते में फंसा है ।
पता तब लगता है जब जूता काटता है ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
4 Responses
Very true. Hum sansarik jeevon mein doordarshita naam matra ki bhi nahin hai aur jab tak paani sar ke upar nahin chala jata, ya phir jab destruction ki kagaar pe khade hain, tabhi humein danger ka maloom pada hai. Agar hum sansarik bandhanon ki nissarta ko pehle hi bhaanp lenge, hum kafi had tak dukhon se bach jayenge.
मुझे नए जूते जैसा लगता है कि हम अपने शौक से उसे पहने रहते हैं क्योंकि पुराने की तो कई बार उतारने की इच्छा जागृत हो जाती है,
नया है, चाहे तकलीफ भी दे तो भी पहने रहते है ।
जीवन को, दोनों ही तरह से सोचा/देखा जा सकता है,
पर निष्कर्ष एक ही है-
“जीवन भ्रम है/दुखदायी है”
Suresh Chandra Jain
This is very true,sansaric bandan se mukt hona chahiye tabhi apana bhala ho payaga.