पाँचों इन्द्रियों के विषयों से विरक्ति का नाम ब्रम्हचर्य-धर्म है।
श्रावकों का धर्म…. दान, पूजा, शील व उपवास हैं।
शील का अर्थ/स्वभाव…. ब्रम्हचर्य होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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ब्रह्मचर्य का तात्पर्य मैथुन व कामसेवन का त्याग करना होता है,ब़ह्म का अर्थ आत्मा में लीन रहना है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि पांचों इन्दिरयो के विषय में विरत्ति का नाम ही ब़ह्मचर्य होता है। जबकि श्रावकों का धर्म, दान,पूजा,शील एवं उपवास है।यह कथन भी सत्य है कि शील का अर्थ एवं स्वभाव होना चाहिए। अतः श्रावकों को ब़ह्मचर्य का महत्व समझकर अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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ब्रह्मचर्य का तात्पर्य मैथुन व कामसेवन का त्याग करना होता है,ब़ह्म का अर्थ आत्मा में लीन रहना है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि पांचों इन्दिरयो के विषय में विरत्ति का नाम ही ब़ह्मचर्य होता है। जबकि श्रावकों का धर्म, दान,पूजा,शील एवं उपवास है।यह कथन भी सत्य है कि शील का अर्थ एवं स्वभाव होना चाहिए। अतः श्रावकों को ब़ह्मचर्य का महत्व समझकर अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।