ब्रम्ह्चर्य
पर के पास जितना जाओगे, आत्मा से उतने ही दूर हो जाओगे ।
शुक देव को 20 साल की अवस्था में वैराग्य हो गया ओर उन्होंने घर छोड़ दिया । उनके पीछे-पीछे उनके पिता उन्हें वापस लाने के लिये जा रहे थे। जब वे एक सरोवर के पास से निकले, उसमें नहाती हुयीं स्त्रीयों ने शुक देव के निकलने पर अपने वस्त्र ठीक नहीं किये, पर जब 80 वर्षीय पिता पास से निकले तब उन्होंने अपने शरीरों को ढ़कना शुरु कर दिया ।
पिता के पूछ्ने पर स्त्रीयों ने कहा- बात उम्र की नहीं है । यदि द्रष्टि सही हो तो कपड़े संभालने की जरुरत नहीं है ।
ब्रम्ह्चर्य, सिर्फ शरीरिक पवित्रता ही नहीं बल्कि द्रष्टि की निर्मलता का नाम है।
मुनि श्री क्षमासागर जी