भक्ति भुक्ति (भोगने) के लिये नहीं,
अनुरक्ति के लिये, अनुरक्ति से संसार से विरक्ति, इससे ही मुक्ति मिलेगी ।
अनुरक्ति से ही केवली के पादमूल में क्षायिक-सम्यग्दर्शन होगा ।
भक्ति भी सम्पर्क वाली नहीं जैसी तेल/पानी,
बल्कि दूध/पानी वाली होना चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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4 Responses
भक्ती—अर्हन्त आदि के गुणो में अनुराग रखना होता है अतः भक्ती भोगने के लिए नहीं होती है बल्कि अनुरक्ति के लिए होती है।जीवन में अनुरक्ति होगी तब ही मोक्ष मार्ग का रास्ता प़शस्त हो सकता है।अनुरक्ति से क्षायिक-सम्यग्दर्शन होगा जिसके कारण मोक्ष की मुक्ति मिल सकती है।भक्ति तेल पानी का सम्पर्क नहीं होना चाहिए बल्कि दूध और पानी की तरह होना चाहिए जिसके कारण मुक्ति मिल सकती है।
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भक्ती—अर्हन्त आदि के गुणो में अनुराग रखना होता है अतः भक्ती भोगने के लिए नहीं होती है बल्कि अनुरक्ति के लिए होती है।जीवन में अनुरक्ति होगी तब ही मोक्ष मार्ग का रास्ता प़शस्त हो सकता है।अनुरक्ति से क्षायिक-सम्यग्दर्शन होगा जिसके कारण मोक्ष की मुक्ति मिल सकती है।भक्ति तेल पानी का सम्पर्क नहीं होना चाहिए बल्कि दूध और पानी की तरह होना चाहिए जिसके कारण मुक्ति मिल सकती है।
What do we mean by “अनुरक्ति” please?
अनुरक्ति = अनुराग
Okay.