भगवान भारत में ही
भगवान भारत में ही क्यों ?
इस धर्म/संस्कृति की फसल के लिये ये ही वातावरण अनुकूल है ।
जैसे चाय के लिये आसाम, सेव के लिये कश्मीर ।
बाहर का वातावरण संसार बढ़ाने के लिये या कहें संसार किसी भी वातावरण में फलफूल सकता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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भगवान् तो कण कण में होते हैं। भगवान् हर आत्मा में रहते हैं। लेकिन धर्म एवं संस्कृति की फसल के लिए वातावरण अनुकूल होना चाहिए। भारतीय संस्कृति में अनुकूलता होने के कारण प़सिद्व है, जबकि पश्चिमी संस्कृति में वह अनुकूलता नहीं है। संसार बढ़ाने के लिए तो सभी जगह है लेकिन संसार से मुक्त होने के लिए अपनी आत्मा का हित रहता है, उक्त धर्म संसार से मुक्त होने के लिए होता है,यह सब भारतीय जैन संस्कृति में ही मिल सकता है।