भवविपाकी

जिन प्रकृतियों का फल भव-विशेष में ही होता है ।
यथार्थत: आयुकर्म की चारों प्रकृतियों को ही भवविपाकी माना है परन्तु गति नामकर्म, आयुकर्म का अविनाभावी है, अत: उपचार से उसे भी भवविपाकी कहा है ।

कर्मप्रकृति – श्री नेमीचंदाचार्य

(सम्पादन/अनुवाद – पं. हीरालाल जी शास्त्री)

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 2, 2013

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031