धर्मध्यान पुण्योदय से नहीं,
पुरुषार्थ से, दानांतराय/वीरांतराय के क्षयोपशम से होता है ।
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यह कथन सत्य है कि धर्म ध्यान से ही पुण्योदय नही मिलता है बल्कि जीवन में पुरूषार्थ से, दानांतराय और वीरांतराय के क्षयोपशम से ही हो सकेगा।अतः भाग्य बनाने के लिए पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा।
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यह कथन सत्य है कि धर्म ध्यान से ही पुण्योदय नही मिलता है बल्कि जीवन में पुरूषार्थ से, दानांतराय और वीरांतराय के क्षयोपशम से ही हो सकेगा।अतः भाग्य बनाने के लिए पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा।