भाव
एस.एल.जैन जी के दीक्षा वाले दिन, एक 101 वर्ष की दादी आयीं और दीक्षा ग्रहण के भाव दर्शाये।
दीक्षा लेने के चौथे दिन समाधिमरण हो गया।
इस उम्र पर दीक्षा के भाव/लेने का साहस इसलिये हो पाया कि 40 साल पहले उनको पीछी मिली थी, तब से वे पीछी को देखकर कहती रहतीं थीं – कब मेरे हाथ आओगी !
आचार्य श्री वर्धमानसागर जी
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जैन धर्म में भावों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। भाव का तात्पर्य जीव के परिणाम को कहते हैं।भाव भी पांच प़कार के होते हैं। उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में भाव विशुद्ध होना चाहिए ताकि जीवन में उसका परिणाम अवश्य मिल सकता है।