गृहस्थ को भी भोजन माँग कर नहीं खाना चाहिये,
ना ही परोसी हुई के अलावा माँगना चाहिये ।
अन्य कारणों के अलावा यह स्वाभिमान का भी विषय है, उज्जवल भविष्य का द्योतक है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ग़हस्थ को भोजन मांग कर नहीं खाना चाहिए,न ही परोसी हूई के अलावा मांगना चाहिए। क्योंकि वह स्वाभिमान का और उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। ग़हस्थ के जीवन में प्रेम और अनुशासन रह सकता है। साधु की आहार चर्या में आहार देना पड़ता है,वह कभी मांगते नहीं है, जिसमें शुद्धता रहती है। अतः इसके कारण ग़हस्थो को भी साधुओं को आहार देने में समस्या नहीं रहेगी।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ग़हस्थ को भोजन मांग कर नहीं खाना चाहिए,न ही परोसी हूई के अलावा मांगना चाहिए। क्योंकि वह स्वाभिमान का और उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। ग़हस्थ के जीवन में प्रेम और अनुशासन रह सकता है। साधु की आहार चर्या में आहार देना पड़ता है,वह कभी मांगते नहीं है, जिसमें शुद्धता रहती है। अतः इसके कारण ग़हस्थो को भी साधुओं को आहार देने में समस्या नहीं रहेगी।