भ्रम

धरती/आसमान मिलते दिखाई देते हैं, पर हैं नहीं ।
आत्मा/शरीर भी एक रूप दिखते हैं, पर हैं नहीं ।
अज्ञानी इस भ्रम में शरीर को ही सब कुछ मानकर उसकी सब मांगों से भी ज्यादा देता है, उसे बिगाड़ देता है जैसे लाड़-प्यार में बच्चों को बिगाड़ देते हैं ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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