मर्यादा
सीताजी ने अपने सतीत्व का हवाला देकर अग्नि परीक्षा में अग्नि को शांत कर दिया, पर जब रावण उनके सतित्व को खंड़न करने के लिये ले जा रहा था तब सतीत्व का सहारा क्यों नहीं लिया ?
जब भी कोई मर्यादा खंड़ित कर देता है तब दोष लग जाता है, चाहे वह उल्लंघन परोपकार के लिये ही क्यों ना हो ।
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उपरोक्त कथन बिलकुल सत्य है – – –
धर्म से जुडने वालों को जीवन में, मर्यादाओं की सीमा रखनी चाहिए । यदि उसका कोई उल्लंघन करते हैं, तो उसके परिणाम मिलते हैं, चाहे वह अच्छे या बुरे के लिए हों । यह सब कर्म सिद्धांत पर आधारित है । जब कभी मर्यादा टूटती है, तो उसका प्रायश्चित गुरुओं के द्वारा लेना चाहिए । रावण एवं सीता जी सभी बहुत धार्मिक थे, लेकिन उनको भी मर्यादाओं को तोड़ने का फल मिला था ।