माँ
जिसको कष्ट न मिलने पर कष्ट होता हो, उसे माँ कहते हैं।
महावीर भगवान ने गर्भ में हलन-चलन बंद कर दिया, ताकि माँ को कष्ट न हो, इस घटना से माँ बेहद परेशान हो गयीं।
यह देखकर भगवान ने हिलना-डुलना शुरू कर दिया, तब माँ उस कष्ट को सहती हुई खुश हो गयीं।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
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प़कृति ने माँ की रचना की है, वह जीवन की पाठशाला है। मुनि श्री क्षमासागर महाराज ने माँ के विषय में लिखा है कि वह भले ही अनपढ हो लेकिन वह बच्चों को सूखे में सुलाकर स्वयं गीले में सोती हो, धर्म के विषय में, अच्छे संस्कार देना, व्यावहारिकता का ज्ञान देना आदि अनेक गुणों से परिचित कराना ही माँ की भूमिका रहती है। अतः माँ कितने भी कष्ट झेलती है लेकिन वह हमेशा खुश रहती है।